कविता : बटोही

जीवन के बटोही

रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

खोल मन के द्वार बटोही

ये दिन न जायें बीत बटोही

जग ये चार दिनो का मेला

इंसान आया गया अकेला

कोई इसको रोक न पाया

पल पल है वक़्त का जाया

क्या खोया क्या पाया तूने

यूँही न जाये तू रीत बटोही

जीवन है अनमोल ख़ज़ाना

लुट जायेगा रह अनजाना

जल बीच जैसे मीन प्यासी

देख देख गति छाये उदासी

मन की आँखें खोली न तूने

छेड़ मिलन के तू गीत बटोही

माया का जलता अंगारा

झुलस रहता मन बंजारा

जहाज़ का पंछी जैसे जाये

उड़ता भटके पर राह न पाये

लौट लौट फिर न आना तूने

ख़ुद को पहले तू जीत बटोही

खोल मन के द्वार बटोही

ये दिन न जायें बीत बटोही