कविता : "प्यार की गहराई में: आंतरिक आनंद का अनावरण

"आलिंगन स्व-प्रेम: शांति की यात्रा"

5/20/20231 min read

तुम ढूंढ रहे हो भटक रहे हो

भाग रहे हो ख़ुद ही से ख़ुद में

मैं स्थिर हूँ शांत हूँ ख़ुश हूँ तुम में

क्योंकि मैंने पाया है प्रेम ख़ुद में..।

तुम नाराज हो मुझसे खुद से संसार से

मुझे तो इन सब में प्रेम ही प्रेम दिखता

है, खुद में तुम में सारे संसार में

मेरा प्रेम तो कण कण में बसा है..।

तुम्हारे लिए सिर्फ बंधना प्रेम है

मेरे लिए मुक्त होना ही प्रेम है

अनंत है जीवन मृत्यु का भेद

प्रेम को प्रेम से जीना ही प्रेम है..।