कविता : तुम मुझसे मिलने आ जाना

मिलने की आस

रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

आंखें जब सूनी हो जाए

भारी भारी सा दिल रीत रहा हो

अपने लगने लगे पराये

मुश्किल से पल पल बीत रहा हो

एक पल भी फिर नहीं गवाना

तुम मुझसे मिलने आ जाना....

लगे सताने कोई तुमको

तुम्हारा मन तुमसे ही खेल रहा हो

जज़्बातों की आड़ ले कोई

अपने स्वार्थ की रोटी बेल रहा हो

उनको उनका चेहरा दिखलाना

तुम मुझसे मिलने आ जाना....

स्वाभिमान छलनी कर कोई

निजता की हर हद तोड़ रहा हो

झूठी इज्जत की खातिर जब

तुमसे तुमको ही छीन रहा हो

ताकत अपनी उनको बतलाना

तुम मुझसे मिलने आ जाना....

तोल मोल कर आंके कोई

भावों का जब भाव करता हो

मन अपना बहलाने को कोई

घावों पर जब घाव करता हो

न झुकना तुम उठ कर टकराना

तुम मुझसे मिलने आ जाना....