कविता : पल पल

पल पल: अनवरत चलता जीवन का सफर

रचना श्रीवास्तव

5/27/20231 min read

रीत रही रे यहाँ पे पल पल

भरी गगरिया ये लम्हों वाली

अथक बहे जीवन की नदिया

सागर से पहले न रुकने वाली

हर पल फिसल रहा मुट्ठी से

समय रेत सा हौले हौले

बांच रहा है भाग्य का लेखा

धर्म कर्म की पोथी खोले

जीवन कश्ती वक़्त की लहरें

बढ़ती जाये कभी कहीं न ठहरें

उठती गिरती सब तोड़ के पहरे

जीवन कब ठहरा जो हम ठहरें