कविता : नशा ज़िंदगी का

नशे में ज़िंदगी

रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

शराब का लेकर सहारा

वो जो जिया करते हैं

नहीं जानते कि ज़िंदगी

से ही दग़ा करते हैं

पी पीकर जीना तो

फ़क़त एक सज़ा है

पी ले जाम ज़िंदगी का

इसमें ही मज़ा है

ज़िंदगी गर ग़म देती है

तो देती है वो दवा भी

शराब क्या ज़िंदगी से

करती है कभी वफ़ा भी

फिर भी जाम पर जाम

पिए जा रहें हैं वो

सोचते नशे में ही सही

जिए जा रहे हैं वो

हक़ीक़त में मर रही है

ज़िंदगी, जी रही है शराब

वो नहीं पी रहे उनको

पी रही है शराब ...........!