कहानी : एक कहानी....

"कहानी की लालसा"

रचना श्रीवास्तव

5/27/20231 min read

“हर वक़्त लिखना,लिखना और लिखना ...ये नहीं घर के काम में मेरा कुछ हाथ बँटा दे ।पता नहीं क्या क्या कथा कहानी लिखती रहती है “, माँ बड़बड़ाते हुए रसोई में चली गयीं।

ऐसा नहीं कि मैं कुछ काम नहीं करती सुबह सुबह स्कूल पहुँचना दिन भर पढ़ाना और आजकल स्कूल में सिर्फ़ पढ़ाना ही नहीं होता , कभी कोई कार्यक्रम तो कभी कोई प्रतियोगिता उसकी तैयारी कराना। इन सबसे फ़ुर्सत मिले तो साप्ताहिक मासिक अर्धवार्षिक वार्षिक ... परीक्षाओं की तैयारी कराओ।

दोपहर में घर आने के बाद तो कुछ करने का मन ही नहीं होता । शाम को चाय लेकर मैं कुछ लिखने बैठती हूँ तो माँ को लगता है कि लो बैठ गई लिखने क्यूँकि उनके लिए तो ये रात के खाने की तैयारी का समय होता है, जानती हूँ सुबह से अकेले सारे घर को सम्भालते अब वो भी थकने लगी हैं;पापा और भैया से तो उन्होंने न कभी हाथ बँटाने की कोई उम्मीद करी और न ही करेंगी।

“हाँ , बताओ क्या काम करना है..?”मैंने पीछे से जाकर उनके गले में हाथ डालते हुए कहा।

“उहँ, जाओ पहले अपनी कथा कहानी पूरी कर लो , नहीं तो कहोगी मेरी वजह से पूरी लिख नहीं पाई... समय से भेज नहीं पाई..!’,माँ ने गले से मेरा हाथ हटा फ्रिज से सब्ज़ियाँ निकलते हुए कहा।

“अच्छा माँ सच सच एक बात बताओ , क्या तुमने कभी कोई कहानी लिखने का नहीं सोचा ... आख़िर मुझमें यह शौक़ कहाँ से आया...? ..मुझे तो लगता है तुम्हीं से आया है..पापा से तो ..कोई सवाल ही नहीं ..उन्हें लिखना कौन कहे कहानी पढ़ना भी पसंद नहीं..!’

“हाँ,ये तो तुमने सही कहा ...!”

“पहले जब मैं कोई अच्छी कहानी या उपन्यास इन्हें पढ़ने को कहती थी तो इनको सुनते ही बुखार चढ़ जाता , कहते ये सब तुम्हीं पढ़ो..”,माँ हँस दी।

“इसका मतलब तुम्हें पढ़ने का शौक़ था , लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी पढ़ते नहीं देखा ...” मैंने आश्चर्य से अपनी याददाश्त पर ज़ोर देते हुए कहा।

“छोड़ो, वो सब बहुत पीछे छूट गया ।”

“नहीं माँ, तुमको लिखना चाहिए था.. ! पता नहीं क्यूँ मुझे हमेशा लगता था कि तुम बहुत अच्छा लिख सकती हो, चाहो तो अब लिखो ...!”

“ अच्छा ..!”

“हाँ माँ सच्ची..!”

“ कोई बात नहीं, तू जो इतना अच्छा लिखती है ..!”माँ ने हँसते हुए कहा ।

फिर सब्ज़ी काटते हुए बोलीं, ”ज़रूरी तो नहीं हर कहानी काग़ज़ पर ही लिखी जाये, बहुत सारी कहानियाँ औरत के दिल,दिमाग़ और शरीर पर भी लिखी होती हैं, जिन्हें जीवन भर वो बिना लिखे,बिना कहे सुनाती चलती है।”

कितनी बड़ी बात कह गयीं माँ..मैं निरुत्तर आश्चर्य से उनके चेहरे पर लिखे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी...!