कविता : रक्तकण

स्त्री के रक्तकण

रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

तुम पूछ पाते हो इसलिए....

तुमने हर स्त्री के चरित्र के बारे में पूछा

उसके आँसू उसकी हँसी के बारे में पूछा

तुमने उसके दिन रात के बारे में पूछा

तुमने हर स्त्री से

उसकी कोख और शिशु के बारे में पूछा

तुम स्त्री से पूछ पाए....

क्योंकि उसे श्राप मिला है

तुमको जानने और समझने का

और हर बात का जवाब देने का

वो चाहे तो तुमको कर दे भ्रमित

गलत जवाबों से तहरीरों से

लेकिन स्त्री ऐसा कुछ नही करती

तुम पूछ पाते हो.....

क्योंकि जानती है स्त्री कि

उसके जवाब से ही है

इस सृष्टि का संचालन और

उसके होने से ही है पोषित

तुम्हारे पुरुष होने के दम्भ का

अनावश्यक पोषण जो वो करती है

तुम स्त्री से पूछ सके......

क्योंकि हर स्त्री जानती है

उसके चुप रहने तक ही है

तुम्हारे प्रत्येक स्वर का अस्तित्व

वो तुमको सवाल पूछने देती है

क्योंकि स्त्री दयालु है माफ कर देती है

स्त्री तटस्थ है स्त्री जानती है

तुम उसकी विराट भव्य कोख से उपजे

मात्र एक रक्त कण ही तो हो....!!!