कविता : सावन आया

सावन की मस्तियाँ

रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

छातों की छाँव

कीचड़ सने पाँव

डूबती हुई सड़कें

लबालब भरी गलियाँ !

गाड़ियों की क़तारें

सीलन भरी दीवारें

बिजली है कड़के

छतें बनी तलैय्या !

आफ़त में है जान

मचलते हैं अरमान

दिल सबके धड़के

नाचे ता ता थैय्या !

नज़र में हरियाली

संग चाय की प्याली

पकौड़ों के गले पड़के

भीग गया रुपैय्या !

गाड़ी से उड़ते छींटे

भीगी मन की भीटें

कश्ती तैराते लड़के

ये बरसाती छुट्टियाँ !

सरसराती है पवन

गाती कज़री की धुन

खिड़कियाँ हैं खड़के

गुलज़ार हुई बस्तियाँ !

मेढकों की टर्र टर्र

झुनझुनाते हैं झींगुर

रैन हो जाये तड़के

सपने जीती अँखियाँ !

ये जगमगाते शहर

खिलखिलाते पहर

आशाओं में जड़के

खिलें मन की कलियाँ !

आयी झूमके बहार

बरसे रस की फुहार

नैनों में अरमां फड़कें

ग़ज़ब ढाए पुरवय्या !

भीगे भीगे दिन आये

सीले सीले पल लाये

अफ़साने नये गढ़ दें

प्रेम में डूबी हस्तियाँ !

धुले धुले से गाँव

खलिहानों की ठाँव

बदरा काहे भड़के

गिरा रहे हैं बिजलियाँ !

जीवंत है कण कण

उत्सुक है क्षण क्षण

अंग अंग प्राण भर दें

ये सावन की मस्तियाँ !