कविता : शब्दों कि खामोशी

ख़ामोशी के रंग

रचना श्रीवास्तव

5/27/20231 min read

शब्द केवल चुभते हैं

गिराते हैं तो सम्भालते भी हैं

हलचल करते हैं संबल भी बनते हैं

विनाश के पार सृजन करते हैं..!

शब्दों की ख़ामोशी मार डालती है

न साँस लेती हैं न ही लेने देती हैं

सन्नाटे में गूँजती हृदय को चीरती

जीवन के पार मृत्यु रचती हैं..!

रंग चाहिए मुझको इस ख़ामोशी के

तेरी एक तस्वीर बनाऊँगी मैं भी

इस ख़ामोशी को बेचैन कर जाऊँगी

कुछ यूँ ख़ामोश गुज़र जाऊँगी मैं भी..!

तूफ़ान की आहट है इस ख़ामोशी में

और कितनी ख़ामोश हूँ अंदर से मैं भी

ज़ोर कोई नसीबों पे चल नहीं सकता

ख़ामोशी है तन्हाई है और हूँ मैं भी..!

कितना कुछ कहने की कोशिश में

एक लम्बी ख़ामोशी से गुज़री हूँ मैं भी

निकाले गए इस के मायने बेशुमार

अजब है मेरी ख़ामोशी और मैं भी…!

छेड़ छेड़ कर गुज़र जाती हैं ये हवायें

देर से ख़ामोश है गहरा समंदर और मैं भी

रंग चाहिए मुझको इस ख़ामोशी के

तेरी एक तस्वीर बनाऊँगी मैं भी…!