लघु कथा : दाग़...
शहर के दंगों में बरसता दाग़
रचना श्रीवास्तव
5/27/20231 min read
आसमान की छाती चीरकर बेतहाशा शहर की ओर उड़ते गिद्धों के झुंड को देखकर क्षितिज पार से झूमते आते मेघों के झुंड ने धड़कते हुए दिल से पूछा , “ क्या आज फिर दंगा हुआ है शहरों में...?”
“अभी हुआ तो नही पर होने ही वाला है , शीघ्र चलो तुम सब भी …..और आज टूटकर बरसना ...!
दाग़ जो धोने हैं, ख़ून और आँसू दोनो को ही आज तुम्हारी बहुत ज़रूरत होगी...!”