कविता : अकेली

थक गई हूँ, पर नहीं हारी

रचना श्रीवास्तव

5/27/20231 min read

थक गई हूँ मैं अकेली

है विषम यह भार ढोना

थके हुए क़दम चाहते

शान्त नभ का एक कोना।

ये ह्रदय अब चाहता है

थाम ले गति समय की

चंचल मन हुआ वियोगी

भूले कैसे घड़ी प्रलय की।

नहीं वक़्त पर वक़्त के

पार जाना चाहती हूँ

आज अपने दिल से हर

एक दाग़ मिटाना चाहती हूँ।

चाँद की बातें पुरानी

फिर दोहराना चाहता है

और उसपर ग़ज़ब ये दिल

फिर मुस्कुराना चाहता है ..!