कविता : सूरज दादा…

"सूरज दादा की दिव्यता: प्रकृति के संघर्ष का विचार"

रचना श्रीवास्तव

5/20/20231 min read

सूरज दादा अब ग़ुस्सा छोड़ो

माफ़ करौ,न हमका तड़पाओ !

नदिया पोखर ताल सूख गये

गरमी रही सबका खूब सताये !

जीव जंतु मरि रहे भूखे प्यासे

घासफूस बिरवा गयेन सुखाए !

गरम हवा के थप्पड़ पड़त हैं

वहिपे लू महारानी रहीं जलाए !

दिन जरि जरि अंगार भये हैं

रातन मा भी कउनो चैन न आए !

कबहूँ तनि धरती पे देखो तुम

बस धूप का चश्मा लियो लगाए !