कविता : भोर की धूप.....

"खिड़की की धूप: सुंदरता की झलक"

कविता

रचना श्रीवास्तव

5/20/20231 min read

मेरी खिड़की पर आ बैठी

भोर की कुनकुनी सी धूप।

दाना पानी चुगती गौरैया

सहलाती गुनगुनी सी धूप।

आँख मूँदकर खोली जब

दिखी मुँडेर इठलाती धूप।

आँगन छज्जे और दीवारें

यहाँ वहाँ मँडराती धूप।

पेड़ों की शाख़ों पर झूले

फुनगी चढ़ इतराती धूप।

स्वर्ण रश्मियाँ कंठ डाल

डाल डाल मदमाती धूप।

भ्रमर डोलते सुमन सुमन

कली कली बतलाती धूप।

नर्म नर्म सी गर्म गर्म सी

भोर समय मन भाती धूप।