कविता : मैं कौन हूँ..

रचना श्रीवास्तव

रचना श्रीवास्तव

5/27/20231 min read

क्षितिज जलधि धरा या
विस्तृत नभ की परछाईं हूँ
एक छाया सी हूँ भटकती
इस छाया की मैं कौन हूँ ?

कुछ न होने पर भी
कुछ होना क्‍या होना है
न कुछ पाने न खोने सा होना
इस परछाई से बाहर मैं कौन हूँ ?

मै रोशनी के सुराखों से
निर्झर झरता हुआ अंधकार हूँ
निशब्द सा स्वर है मेरा
शून्‍य की फैलती गूंज मैं कौन हूँ ?

तनहा तनहा अकेली सी
धुंधली धुंधली विस्तारित
अनुत्तरित प्रश्नो की भीड़ में
निस्सारित धूल सी मैं कौन हूँ ?

मेरी रातों के अंधेरों से ही है
रोशनी की मृगतृष्णा अपार
मै मन की दस्‍तकों से ऊर्जित
रचित एक संसार मैं कौन हूँ ?

मेरी मृत्‍यु से बना मेरा जीवन
मेरे न होने से ही मेरा होना है
अपनी परछाई से ही निकली
मात्र एक परछाईं मैं कौन हूँ ?